रायपुर। एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी प्रांगण में चल रहे मनोहरमय चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में बुधवार को नवकार जपेश्वरी साध्वी शुभंकरा श्रीजी ने कहा कि हम जब अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं, तो हमें हमारे माता-पिता का स्वभाव विपरीत लगने लगता है और हम उस स्वभाव को बदलने का प्रयास करते हैं। आप जन्म के बाद से अपने माता-पिता को देखते आ रहे हैं और आपके बचपने से ही उनका स्वभाव जैसा है पचपन में भी वैसा ही रहेगा, आप उसे आज बदल नहीं सकते हैं।
साध्वीजी ने आगे कहा कि आज घर में जब नई बहू आती है तो उसे घर के क्रियाकलाप और नियमों में ढलने के लिए 1 साल का वक्त आराम से लग ही जाता है। इन 1 सालों में वह बहू नहीं जान पाती हैं तो घर से अलग होने का सोचती है और जब पति पत्नी घर से अलग रहने लगते हैं तो अकेलापन उन्हें घेरने लगता है। ऐसी नौबत तलाक तक भी पहुंच जाती है। अगर बहू ने घर को समझ लिया तो आनंद की अनुभूति होगी। उसे घर जम गया तो घर स्वर्ग बन जाएगा और नहीं जमा तो जीवन नर्क हो जाएगा। हमारा घर एक मंदिर है, हमें घर को स्वर्ग बनाना है तो खुद को बदलना होगा, माता पिता को नहीं।
साध्वीजी ने आगे बताया कि ठीक उसी प्रकार जब आप बच्चे को संस्कारवान बनाना चाहती हैं तो यह जान लीजिए की गर्भकाल से 5 वर्ष तक का समय ही बच्चे को संस्कार देने का समय होता है। जब आपका बच्चा 5 साल का हो जाएगा उसके बाद आप उसमें संस्कार रोपेंगे तो वह उसे ग्रहण नहीं कर पाएगा। सब मां चाहती है कि उसका बेटा राम बने, पर आपको यह विचार करना होगा कि क्या आप कौशल्या जैसी मां है। आपको कौशल्या बनकर अपने बच्चों को संस्कारित करना होगा।
महात्मा गांधी ने जैन मुनि के समक्ष ली थी प्रतिज्ञा
साध्वीजी ने बताया कि आज हर शहर में हर नगर में महात्मा गांधी के नाम से चौक चौराहे होते हैं सड़के होती हैं और उनकी प्रतिमाएं भी स्थापित की जाती हैं। उनकी मां पुतलीबाई ने उन्हें ऐसे संस्कार दिए थे जिसकी वजह से उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई। जब महात्मा गांधी ने विदेश जाने का फैसला किया तो उनकी मां सहन गई कि कहीं विदेश जाकर मोहनदास मांस आदि का भक्षण ना करने लग जाए। पुतलीबाई महात्मा गांधी को अपने साथ एक जैन मुनि के पास ले जाती है और उन्हें प्रतिज्ञा दिलवाती है कि वह विदेश जाकर इन तीन चीजों से दूर रहेंगे- मांस, मदिरा और पर स्त्री गमन। यह प्रतिज्ञा लेने के बाद मां के द्वारा गांधी जी को विदेश जाने की अनुमति मिली। जब आपका बेटा पढ़ने के लिए बाहर महानगरों में जाता है तो क्या आप उससे ऐसी प्रतिज्ञाएं दिलवाते हैं। आपको यह प्रतिज्ञा दिलानी चाहिए क्योंकि प्रतिज्ञा लेने के बाद व्यक्ति के जीवन में एक बंधन आ जाता है। यह संस्कारों का बंधन होता है और यह बंधन जीवन में रहना आवश्यक भी है। हम नियमों से डरते हैं, कई लोग तो इस डर से गुरू भगवंतों के पास भी नहीं जाते क्योंकि उन्हें कोई प्रतिज्ञा ना लेनी पड़ जाए। ये तीन नियम आपके जीवन को सुरक्षित रखते हैं, जीवन का बचाव करते हैं और पतन होने से आपको बचा लेते हैं।
30वें मासश्रमण का पच्चखाण लेने वाले विजय संचेती का हुआ बहुमान
श्रीसंघ ने आज 29 मासश्रमण पूरा कर चुके विजय संचेती का बहुमान किया। आज उनका 25वें उपवास का पच्चखाण हुआ। उन्होंने 29 बार 1 महीने का मासश्रमण उपवास पूरा कर लिया है। इस बार उनका 30वां मासश्रमण है। आज विजय कांकरिया, प्रकाश मालू और प्रकाश सुराना ने विजय संचेती का बहुमान किया।