रायपुर। एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी प्रांगण में चल रहे मनोहरमय चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में मंगलवार को नवकार जपेश्वरी साध्वी शुभंकरा श्रीजी ने कहा कि मां की ममता और पिता की क्षमता इन दोनों को आप कभी नहीं समझ सकते हैं। वैसे ही आप कभी माता-पिता का ऋण नहीं चुका सकते हैं। उनके कर्ज से आप कभी मुक्त नहीं हो सकते हैं, हां कुछ राहत आपको जरूर मिल सकती है, जब आप उन्हें धर्म से जोड़ेंगे और तीर्थ करवाएंगे। आपके माता पिता बहुत उपकारी हैं, जो आज आप यहां खड़े हैं, यह मुकाम हासिल कर लिया है। अगर वही मां-बाप पैदा कर आपको कचरे के ढेर में छोड़ दिए होते तो क्या आप आज यहां तक पहुंच पाते, आप कभी नहीं पहुंच सकते थे। जिसने बचपन में आपको उंगली पकड़कर चलना सिखाया, अब आपकी बारी है कि पचपन में उनका हाथ पकड़ कर उनके साथ चलें।
साध्वीजी ने कहा कि सबसे पहले आपको परमात्मा की पूजा करनी होगी लेकिन आज परमात्मा रूपी माता-पिता आपके घर में हैं तो उनकी पूजा आपको सबसे पहले करनी है। माता पिता को पूजे बगैर आपको धर्म में एंट्री नहीं मिल सकती है। आप कितना भी तप कर लो ध्यान कर लो दान कर लो तब भी धर्म का कोई मतलब नहीं होगा। माता-पिता उस एक की संख्या के जैसे हैं, जो शून्य के सामने लगकर कीमत बढ़ाते हैं। बिना मां बाप के आशीर्वाद से आप कितना भी बड़ा उपकार का काम करने, कोई परोपकार कर लें लेकिन वह सब बिना एक के शून्य के समान होगा केवल शून्य बढ़ता रहेगा लेकिन उसका मूल्य नहीं बढ़ेगा। आपका जीवन सफल और सार्थक तभी बनेगा जब आप माता पिता की सेवा करेंगे।
समय के साथ चलें
समय पर आधारित प्रसंग पर साध्वीजी ने कहा कि जहां देवता रहते हैं उस देवलोक में हमेशा उजियारा रहता हैं और नरक लोक में कभी सूर्य उदय और सूर्यास्त नहीं होता, वहां हमेशा अंधेरा रहता है। तो हम मनुष्य कहां रहते हैं, हम समुद्र के चारों और घिरे हुए जमीन के टुकड़े पर रहते हैं, भूगोल में जिसे ग्लोब कहा गया है, वह जैन दर्शन में मात्र एक बिंदु के समान है। हम एक समय क्षेत्र में रहते हैं। यहां कभी हाथी, घोड़े, बैल पशुओं ने घड़ी नहीं देखी। आकाश में उड़ते पंछियों ने कभी समय नहीं देखा। वह सारे सूर्योदय और सूर्यास्त को देखकर अपना भोजन-पानी कर लेते हैं। केवल मनुष्य ही घड़ी देखकर समय के अनुसार काम करते हैं। पुराने समय में तो घड़ी का चलन भी नहीं था, हमारे पूर्वज परछाई को देखकर यहां सटीक अंदाजा लगा लेते थे कि सूर्य उदय को अब तक कितने घंटे हो चुके हैं। आज भी देश दुनिया में ऐसे अधोसंरचना स्थापित है जिस पर सूर्य का प्रकाश पड़ने पर वह अपनी परछाई से सही समय दिखाता है। फिर घड़ी आ गई, घर के हॉल में केवल एक बड़ी सी घड़ी लगी रहती थी और जिसे समय देखना होता था, वह हॉल में आकर समय देखता था। फिर घर के हर रूम में घड़ी लगने लगी, उसके बाद सबके हाथों में घड़ी आ गई और आज तो मोबाइल का जमाना है, लोग स्मार्ट वॉच इस्तेमाल करते हैं। समय के इस बढ़ते चक्र में घड़ी का स्वरूप बदलता गया पर मानव का अब तक नहीं बदल पाया है। जिसने आज समय का सम्मान किया वह सम्मानित होता है और जिसने समय के मूल्यों को नहीं समझा उसका कभी मूल्यांकन नहीं हुआ। आज तो घड़ियां सेल, इलेक्ट्रिक, मैनुअल और चाबियों से चलती है। और यह घड़ियां जब चलती है तो यह हमारे हिसाब से नहीं चलती हमें घड़ी के हिसाब से चलना होता है। आप घड़ी देख कर काम करें और जब आपको कहीं जाने में देर हो जाए तो आप बहुत ही जल्दबाजी में काम करने लगते हो, बार-बार घड़ी देखने लगते हो। इसलिए आपको अपने सभी कामों का समय तय करना होगा क्योंकि घड़ी कभी नहीं हड़बड़ाती वह अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती रहती है, और आपको भी ऊंची रफ्तार से आगे बढ़ना है तो आप कभी जीवन में लेट नहीं होंगे।