रायपुर। पहले सब को खाना खिलाने के बाद खुद भोजन करना ही उचित है। घर के सदस्यों को और मेहमानों को बिना खाना खिलाए खुद भोजन करना राक्षसी भोजन के समान है। आज तो सब घर के दरवाजे बंद करके खाना खाते हैं जबकि पहले लोग दरवाजा खोलकर खाना खाते थे, ताकि कोई मेहमान या गुरु भगवंत दरवाजा खुला देखकर अंदर आ जाए तो उन्हें भी भोजन कराया जा सके।
यह बातें एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी प्रांगण में चल रहे मनोहरमय चातुर्मास 2023 की प्रवचन श्रृंखला के दौरान पर्युषण पर्व के चौथे दिन बुधवार को नवकार जपेश्वरी साध्वी शुभंकरा श्रीजी ने कही।
खुद की कमजोरी पहचानो और स्वयं उसका ईलाज करो
साध्वीजी कहती है कि हम जो दूसरे को देते हैं वही घूम कर हमें वापस मिलता है। हम एक देंगे तो हमें 10 मिलेगा। प्रेम के बदले प्रेम, नफरत के बदले नफरत, मंदिर में दान करोगे तो उसके बदले आपको पुण्य मिलेगा और धर्म करोगे तो मोक्ष का रास्ता प्रशस्त होगा। केवल दान देने से ही कुछ नहीं होगा हमें अपने आप को सुधारना भी होगा। लोभ, द्वेष, क्रोध, माया यह सब छोड़ना होगा। सुधारने के लिए आपका बढ़ाया हुआ पहला कदम ही आखिर कदम होगा। क्योंकि एक बार जिसके मन में सुधारने की चाहत आ गई तो फिर वहां पीछे नहीं मुड़ते हैं। बहुत ठोकर खाने के बाद ही मन में सुधारने का विचार आता है। हमारा मन विकल्पों में उलझते जा रहा है। हमारे मन पर हमारा नियंत्रण नहीं है। हम धर्मस्थल में बैठकर प्रवचन सुनते तो हैं पर उसे जीवन में उतर नहीं पाए क्योंकि प्रवचन के समय मन कहीं और लगा होते हैं। आज आपको केवल तन को चंगा करने की चिंता है, मन को नहीं। आज तो डॉक्टर भी एक्स-रे, इको, एमआरआई के माध्यम से शरीर की जांच करते हैं फिर बीमारी बताते हैं और उसकी दवाई देते हैं। लेकिन कोई डॉक्टर हमारी पारिस्थितिक समस्याओं का हल नहीं कर सकता। हमें स्वयं का डॉक्टर बनकर खुद का इलाज करना है। कल्पसूत्र का हम आज श्रवण कर रहे हैं, इसका एक भी अंश हम अपने जीवन में उतार लें तो जीवन सफल हो जाएगा।
क्षमा रूपी अमृत के स्वाद को वही व्यक्ति जानता है जो इसको जीवन में जीता है। क्रोध करने वाला व्यक्ति कभी महान नहीं होता, क्षमा को धारण करने वाला ही महान होता है। विपरीत वातावरण होने पर भी जब आदमी प्रेम और क्षमा को बनाए रखता है, वही महान है। एक बात हमेशा याद रखें कि आलोचना में कभी उबलना मत और सफलता में कभी पिघलना मत। क्योंकि ये तो वक्त-बेवक्त बदलते रहते हैं। आज कोई व्यक्ति तुम्हारा अपना बना है तो वह तुम्हारी प्रशंसा कर रहा है और कल किसी बात को लेकर उसी व्यक्ति से तुम्हारी अनबन हो गई तो वह तुम्हारी प्रशंसा नहीं आलोचना करने लग जाएगा। इसका मतलब प्रशंसा और आलोचना की स्थितियां बदलती रहती हैं। पर एक बात हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि हमें इन बदलती परिस्थितियों में अपनी क्षमा भावना सदा बनाए रखना चाहिए।
जीवन में उतारें क्षमा, विनम्रता, मैत्री और संतोष का भाव
साध्वीजी ने आगे कहा कि पर्युषण पर्व के आज चौथे दिन हमें अपने जीवन से चार चीजों को हटाना है। वे हैं- क्रोध, मान, माया और लोभ। पर्युषण पर्व का यह चौथा दिन हमें कहता है- ये चार हमारे जिंदगी में जहर हैं, इनको जिंदगी से निकालो। जब जहर को निकाला है तो जीवन में अमृत को ग्रहण करना होगा। क्रोध अगर पहला जहर है तो प्रेम और क्षमा जिंदगी का पहला अमृत है। अहंकार अगर जहर है तो विनम्रता यह हमारे भीतर का अमृत है। माया अगर जहर है तो मैत्री हमारे जीवन का अमृत है। लोभ अगर जहर है तो संतोष हमारे जीवन का अमृत है। क्षमा-प्रेम, विनम्रता, मैत्री भावना और संतोष को हमें अपने जीवन से जोड़ना है। और ऐसे ही चार संकल्प हम और करेंगे। वे हैं- दान, शील, तप और भाव।
उन्होंने आगे कहा कि खौलते-उबलते पानी में जब आपका चेहरा भी नजर नहीं आता तब आप उबलते गुस्से में होंगे तो दूसरे लोग आपको कहां से पसंद करेंगे। सम्राट के क्रोध से भी ज्यादा महान एक भिखारी की क्षमा होती है। मिठास हो जहां, वहां चीटियां भी आती हैं और जहां खटास हो, वहां चींटियां भी आना पसंद नहीं करतीं। आदमी सूरत से नहीं सीरत से महान होता है। भगवान महावीर मंदिरों में इसीलिए पूजे जा रहे हैं कि उनका चरित्र सुंदर था। यह पयुर्षण पर्व हमें प्रेरणा देता है कि जीवन में क्षमा और प्रेम की ज्योति जलाइए। जो क्षमाशील होता है सभी उसे पसंद करते हैं। दंड देने वाले को दुनिया में कोई याद नहीं करता, माफी देने वाले को दुनिया में सब याद किया करते हैं। जिंदगी कितनी गजब की है कि लोग वर्षों पुराने कैलेंडर घर में नहीं रखते लेकिन वर्षों पुराने बैर-विरोध को अपने मन में पाल कर रखते हैं। आदमी को मन में बैर-विरोध, कलुषता की गांठें बांधकर नहीं रखनी चाहिए।
मनोहरमय चातुर्मास समिति के अध्यक्ष सुशील कोचर और महासचिव नवीन भंसाली ने बताया कि भगवान धर्मनाथ एवं दादाबाड़ी की भव्य अति भव्य प्रतिश्ठा के पष्चात प्रथम पर्युशण महापर्व के तृतीय दिन त्रिलोकीनाथ भगवान धर्मनाथ के पूरे मंदिर एवं दादाबाड़ी की सजावट, आंगी एवं आरती का लाभ कमल कुमार, सुनील कुमार, सुरेष, अभय कुमार भंसाली परिवार ने लिया है। श्री ऋशभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं मनोहरमय चातुर्मास समिति की ओर से भंसाली परिवार की बहुत-बहुत अनुमोदना।