जातिगत समीकरण भी बना चर्चा का केंद्र
कवर्धा। छत्तीसगढ़ कांग्रेस पार्टी द्वारा संगठन सृजन की प्रक्रिया को लेकर प्रदेशभर में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। पार्टी उच्च कमान द्वारा राज्य के सभी जिलों में नए जिला अध्यक्षों की नियुक्ति किसी भी समय घोषित की जा सकती है।
कवर्धा जिला कांग्रेस अध्यक्ष के लिए आनंद सिंह पहली पसंद
कांग्रेस से जुड़े विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, कवर्धा (कबीरधाम) जिले से आनंद सिंह का नाम जिला अध्यक्ष पद के लिए सबसे मजबूत दावेदार के रूप में उभरकर सामने आया है। आनंद सिंह पिछले विधानसभा चुनाव में पंडरिया विधानसभा क्षेत्र से टिकट के प्रबल दावेदार के रूप में अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराई थी। संगठन के प्रति उनकी निष्ठा, सक्रिय भूमिका और कर्मठता सहित समूचे ब्लाक से जुड़े कार्यकर्ता नेताओं की पहली पसंद आनंद सिंह माने जा रहे है जिसके चलते उन्हें कांग्रेस परिवार में एक विश्वसनीय चेहरा मना जाता है।
कांग्रेस पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जिलाध्यक्ष के लिए आनंद सिंह का नाम लगभग तय माना जा रहा है, और बहुत जल्द कांग्रेस हाईकमान द्वारा सभी जिलों के अध्यक्षों की सूची दिल्ली से जारी की जाएगी। आनंद सिंह को संगठन में एक निष्पक्ष, मिलनसार और अनुभवी नेता के रूप में जाना जाता है, जो कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं के करीबी हैं। वही जिला संगठन के सभी विंगों से आनंद सिंह को भरपूर समर्थन मिलता रहा है उनके नाम को लेकर संगठन में किसी भी तरह की गुटबाज़ी या विरोध नहीं है।
जातिगत समीकरण प्रक्रिया भी लागू होने की संभावना – सूत्र
इस पूरे प्रक्रिया के साथ ही अध्यक्ष पद हेतु जातिगत समीकरण भी इस बार संगठन सृजन की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, अगर सामाजिक और जातिगत संतुलन कवर्धा जिले के लिहाज से बैठता है, तो इसका लाभ पूर्व विधायक ममता चंद्राकर या पूर्व जिला अध्यक्ष होरीराम साहू को भी मिल सकता है। दोनों ही ओबीसी वर्ग से आने वाले अनुभवी नेता हैं और संगठन में अपनी सक्रियता बनाए रखे हुए हैं।
वहीं दूसरी ओर, आनंद सिंह लगातार संगठन में सक्रियता से कार्य करते आ रहे हैं। छात्र जीवन से लेकर युवा विंग और अब मुख्य संगठन तक, उन्होंने संगठन संचालन का लंबा अनुभव प्राप्त किया है। चुनावी रणनीति और राजनीतिक समझ के क्षेत्र में उनकी सूझबूझ को पूरा जिला कांग्रेस मे विशिष्ट स्थान प्राप्त है।
यही कारण है कि संगठन में उनकी पकड़ और काम के प्रति समर्पण को देखते हुए वे पार्टी आलाकमान और ए.आई.सी.सी. के शीर्ष नेतृत्व की पहली पसंद माने जा रहे हैं। अब देखने वाली बात होगी कि राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों के इस संतुलन में अंतिम निर्णय किसके पक्ष में जाता है।
